गुरुवार प्रदोष व्रत कथा

 गुरुवार प्रदोष व्रत कथा ,महत्व ,पूजा विधि।


गुरुवार प्रदोष व्रत का बड़ा ही महत्व बताया गया है।इससे ऐश्वर्य और विजय की प्राप्ति होती है।इस व्रत को करने से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।

गुरुवार प्रदोष व्रत को करने से 100 गायों का दान करने के बराबर पुण्य मिलता है। इस प्रदोष व्रत को करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत में प्रदोष काल में भगवान शिव पार्वती की पूजा विशेष महत्व है।इस व्रत से आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

गुरुवार प्रदोष व्रत कथा।

सूत जी कहते हैं एक बार इंद्र और वृत्ता सुर की सेना में बहुत भयानक युद्ध हुआ देवताओं ने वृत्ता सुर की सेना को पराजित कर दिया यह देख वृत्ता सुर अत्यधिक क्रोधित हो गया  और स्वयं युद्ध के लिए उद्यत हो गया। वह अपनी आसुरी माया से बहुत ही विकराल रूप में आ गया ,यह सब देख  देवता भयभीत हो गए और बृहस्पति जी की शरण में गए।

बृहस्पति जी कहते हैं पहले में तुम्हे वृत्ता सुर का परिचय बताता हूं।वह कहते हैं वृत्ता सुर बड़ा ही तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। पूर्व समय में वह एक चित्र रथ नाम का राजा था ।एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया।

वहां शिवजी के बाम अग में जगदंबा को देख उपहास करके बोला हे! प्रभु हम तो मोह माया के  कारण स्त्री वशीभूत रहते हैं लेकिन देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध होकर सभा में बैठे।

राजा चित्ररथ के यह वचन सुन कर भगवान शिव कहते हैं हे,!राजन मेरा दृष्टिकोण पृथक है मैने कालकूट विष का पान किया है और तुम साधारण जन की भांति मेरा मजाक बना रहे हो।इतने में माता पार्वती क्रोधित हो गई और  बोली अरे ! दुष्ट तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा उपहास उड़ाया है मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि तू दोबारा किसी संत का ऐसा उपहास करने की सोचेगा भी नहीं।
अब तू दैत्य रूप धारण कर विमान से धरती पर गिर मैं तुझे शाप देती हूं।

माता के शाप के कारण चित्र रथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के तप से  उत्पन्न हो वृत्ता सुर बना।

अब बृहस्पति जी कहते हैं कि वृत्तासुर बाल अवस्था से ही भगवान शिव का भक्त है अब हे! इंद्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत करके भगवान शिव को प्रसन्न करो।
देवराज इंद्र ने बृहस्पति प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्ता सुर पर विजय प्राप्त की और देव लोक में सुख शांति आई।अतः हर शिव भक्त को यह व्रत करना चाहिए।

पूजा विधि 


गुरुवार प्रदोष के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा प्रदोष काल में ही की जाती है।
•भगवान गणेश का पूजन सबसे पहले किया जाता है 
•उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
•भगवान शिव का अभिषेक करके आरती करें ।
•भोग लगाए और भगवान की आराधना करें। 

ॐ नमः शिवाय 

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