आमलकी एकादशी कब है 2025 कैसे करें यह व्रत

 आमलकी एकादशी 2025 कब है यह व्रत कैसे करें इस दिन क्या करना चाहिए।

फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं इस तिथि को रंगभरी एकादशी भी कहते है। इस साल यह तिथि दस मार्च को पड़ रही है। इस दिन रंगभरी और आमलकी एकादशी व्रत रखा जाएगा, जिसमें भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाएगी।
इस रंगभरी आमलकी एकादशी के दिन श्रीकृष्ण जी के मंदिरों में अबीर-गुलाल और फूलों की होली खेली जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ आंवले के पेड़ की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, सांसारिक सुख और मोक्ष भी मिलता है। यही वजह है कि इस तिथि को आमलकी एकादशी भी कहते हैं।

क्या हैं इस व्रत के नियम कैसे करें 

• सूर्योदय होने  से पहले स्नान करना - व्रत रखने वाले को प्रात:काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।

•भगवान विष्णु जी  की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करा कर  और उन्हें फूल, तुलसी दल, पीले वस्त्र और मिठाई अर्पित करना चाहिए और व्रत रखने का संकल्प लें 

• व्रत की कथा सुनना चाहिए,इस दिन व्रत कथा सुनने और सुनाने का विशेष महत्व है।

• इस आमलकी एकादशी के दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। केवल फलाहार करें या जल ग्रहण करें।

कुछ अन्य नियम:
•धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आमलकी एकादशी व्रत के दौरान सत्य, अहिंसा और संयम का पालन करना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस दिन किसी भी प्रकार के बुरे विचारों या कार्यों से बचना चाहिए। भगवान विष्णु के सामने संतान प्राप्ति की कामना करके व्रत का संकल्प लेना फलदायक माना जाता है।

आमलकी एकादशी व्रत कथा।

पौराणिक मान्यता के अनुसार वैदिश नाम का एक नगर था, उस नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र रहते थे। वहां रहने वाले सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और वहां कोई भी नास्तिक नहीं था। उसके राजा का नाम था चैतरथ। राजा चैतरथ विद्वान थे और वह बहुत धार्मिक थे। उनके नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र नहीं था। नगर में रहने वाले सभी लोग एकादशी का व्रत करते थे। एक बार फाल्गुन महीने में आमलकी एकादशी आई। सभी नगर में रहने वाले लोगों ने और राजा ने यह व्रत किया और मंदिर जाकर आंवले की पूजा की और वहीं पर रात्रि जागरण किया। तभी रात के समय वहां एक बहेलिया आया जो कि घोर पापी था, लेकिन उसे भूख और प्यास लगी थी तो वह जाकर मंदिर के कोने में बैठकर जागरण को देखने लगता है और विष्णु भगवान व एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगता है। इस तरह वह  रात बीत जाती है ।नगर वासियों के साथ साथ बहेलिया भी पूरी रात जागता रहा। सुबह होने पर सभी नगरवासी अपने घर चले गए। बहेलिया भी घर जाकर भोजन किया। लेकिन कुछ समय के बाद बहेलिया की मौत हो गई।
उस रात  उसने आमलकी एकादशी व्रत की पूर्ण कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, इसलिए उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया था। और  राजा ने उसका नाम वसुरथ रखा था। वह  बड़ा होकर वह नगर का राजा बन गया । एक दिन वह शिकार पर निकला, लेकिन बीच में ही मार्ग भूल गया। रास्ता भूल जाने के कारण वह एक पेड़ के नीचे सो गया। थोड़ी ही देर के  बाद वहां म्लेच्छ आ गए और राजा को अकेला देखकर उस राजा को  मारने की योजना बनाने लगे। उन्होंने कहा हां इसी राजा के कारण उन्हें देश  से निकाला दिया गया था। इसलिए इसे हमें मार देना चाहिए। इस बात से अनजान राजा सोता रहा। म्लेच्छों ने राजा पर हथियार फेंकना शुरू कर दिया। लेकिन उनके शस्त्र राजा पर फूल बनकर गिरने लगे।

और कुछ ही  देर के बाद सभी म्लेच्छ जमीन पर मृत होकर गिर पड़े।  और जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हैं। राजा समझ गया कि वह सभी उसे मारने के लिए आए थे, लेकिन किसी ने उन्हें ही मौत की नींद सुला दी। यह देखकर राजा ने कहा कि जंगल में ऐसा कौन है, जिसने उसकी जान बचाई है। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन भगवान विष्णु ने तुम्हारी जान बचाई है। तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुना था और उसी का फल है कि आज तुम शत्रुओं से घिरे होने के बावजूद जीवित हो। राजा अपने नगर लौटा और सुखीपूर्वक राज करने लगा और धर्म के कार्य करने लगा।



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